22 जनवरी 2024 को अयोध्या में हुए रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव 2024 के द्वंद्व युद्ध के लिए अपने पाशे को राजनीति क्षेत्र में फेक दिया गया है। जिसके संदर्भ में विपक्षी पार्टियों के पास फिलहाल कोई रामबाढ़ नहीं हैं।
बता दें कि विधानसभा के बजट सत्र 2024-25 में राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव देते हुए विपक्ष के आरोपों का उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री ने जो कहा है वास्तव में उसके पीछे एक बहुत बड़ा राज़ छिपा हुआ है। जिसमें विरोधियों को उदाहरण के साथ नसीहत भी छिपी है। लेकिन इसके बाद भी विपक्ष को घेरने के लिए कोई भी रास्ता नहीं छोड़ा गया है।
संभवतः यह भारत में पहला मौका है जब किसी मुख्यमंत्री ने विधानसभा में हिंदुत्व को सेंटर में रखकर ऐसा भाषण दिया है। जिससे ये स्पष्ट है कि ये राजनीतिक बयान नहीं बल्कि विधानमंडल इस भाषण के एक-एक शब्द लंबे समय तक संवैधानिक रिकॉर्ड में रहने वाला है। इसके आधार पर यह भाषण भारतीय संस्कृति और इतिहास पर दुनिया भर के शोधकर्ताओं के लिए भविष्य में ”हिंदू राजनीति” विषय पर प्रमुख संदर्भ के रूप में काम करने वाला है।
भाषणों के चपेट से निकलना विपक्ष के लिए मुश्किल
सीएम योगी ने विधानसभा में ”नंदी”, ”कृष्ण”, ”महाभारत”, तथा ”कौरव” जैसे शब्दों और इन्हें भारतीय संस्कृति के प्रतीकों से जोड़कर विपक्ष को जवाब देने के रास्ते को बंद कर दिया है। मुख्यतौर पर जब लोकसभा की बात हो और यूपी में 80 से अधिक सीटें हो और मुख्य विपक्षी दल के रूप में सपा के मुखिया अखिलेश यादव खुद को कृष्ण के वंशज के रूप में दावा करते हों।
परंतु जैसा की कहा जाता है कि राजनीति में कुछ असंभव नहीं है कभी अया राम इस पार्टी में तो कभी गया राम उस पार्टी में जाते रहते हैं। पर, योगी ने साफ तौर पर न सिर्फ राजनीतिक तौर पर सपा, बसपा, कांग्रेस, वामपंथ जैसी पहचान वाले विपक्षियों को बल्कि सामाजिक तौर पर विरोधियों को भी महाभारत के उल्लेख से उदाहरण देने की कोशिश की है। जिसके समझ के ही आगे की राजनीति को समझा जा सकता है।
लेकिन जिस रुप में योगी ने अपना भाव प्रकट करते हुए भावनात्मक रूप से कहा कि, अयोध्या की तरह काशी और मथुरा भी सनातन संस्कृति एवं सभ्यता का प्रतीक हैं। जिससे यह स्पष्ट है कि विदेशी आक्रमण के निशान को मिटाए बिना सनातन धर्मावलंबियों को संतोष नहीं मिल सकता है।
विपक्ष, कैसे देगा इसका जवाब!
आपको बता दें कि अखिलेश यादव यदि मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि पर भाजपा के चिन्हों के साथ खड़े हुए तो मुस्लिम वोट छिटकने का खतरा बढ़ जाएगा और यदि वह ऐसा नहीं करते हैं तो भाजपा उनके यदुवंशियों का प्रतिनिधित्व करने या कृष्ण का वंशज होने के दावों पर हमला बोलकर और सवाल खड़े करके, उनके हिंदू वोटों के क्षेत्र में सेंध लगा सकती है। दरअसल, योगी ने नाम भले ही न लिया हो लेकिन बात यही रखने का प्रयास किया है कि मुस्लिम वोट पाने और उन्हें खुश रखने के लिए गैर भाजपा दलों के शासन में अयोध्या, मथुरा, काशी के विकास की अनदेखी की गई थी।
योगी की विधानसभा कही ये बातें खुद को मोदी और योगी से बड़ा हिंदू धर्म का पालन करने वाले और उनकी रक्षा में अपने आप को बताने वाले, गैर भाजपा दलों के नेताओं को हिंदुत्व की पिच पर खेलने और हिंदुओं के वोटों में हिस्सा बांटने का आमंत्रण देती दिखती है। लेकिन वे ऐसा नहीं कर सकते हैं क्योंकि इससे उसके मुस्लिम वोट फिसलने का भी खतरा बना रहता है।