उत्तर प्रदेश सरकार ने किरायेदारी से जुड़े विवादों को कम करने और पारदर्शिता लाने के लिए किराया समझौतों (रेंट एग्रीमेंट) की रजिस्ट्री अनिवार्य करने का फैसला किया है। अब सिर्फ रजिस्टर्ड एग्रीमेंट पर लिखी शर्तें ही कानूनी रूप से मान्य होंगी, जिससे किरायेदारों और मकान मालिकों दोनों को सुरक्षा मिलेगी।
इस नई व्यवस्था के तहत स्टाम्प शुल्क भी कम कर दिया गया है, ताकि अधिक से अधिक लोग अपने किरायेदारी समझौतों को पंजीकृत करा सकें। आइए जानते हैं इस प्रस्ताव के मुख्य बिंदु—
उत्तर प्रदेश सरकार ने किरायेदारी समझौते की पंजीकरण प्रक्रिया को सुलभ बनाने के लिए स्टाम्प शुल्क को कम कर दिया है।
किराये की राशि (वार्षिक) | नया स्टाम्प शुल्क |
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₹2 लाख तक | ₹500 |
₹5 लाख तक | ₹5,000 |
₹1 करोड़ तक | ₹20,000 |
समयावधि | पुराने नियम (स्टाम्प शुल्क) | नए नियम (स्टाम्प शुल्क) |
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1 साल | किराए का 2% | ₹500 से ₹20,000 तक |
5 साल | 3 वर्ष के किराए का 2% | लागू नहीं |
10 साल | 4 वर्ष के किराए का 2% | लागू नहीं |
30 साल+ | 7% (बैनामा शुल्क) | लागू नहीं |
उत्तर प्रदेश सरकार महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए संपत्ति की रजिस्ट्री पर स्टाम्प शुल्क छूट दे रही है।
संपत्ति मूल्य | पहले स्टाम्प शुल्क | अब (महिलाओं के लिए छूट) | बचत |
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₹10 लाख तक | 7% (₹70,000) | 6% (₹60,000) | ₹10,000 |
₹1 करोड़ तक | 7% (₹7 लाख) | 6% (₹6 लाख) | ₹1 लाख |
स्टाम्प एवं पंजीयन मंत्री रवींद्र जायसवाल के अनुसार, यह प्रस्ताव जल्द ही राज्य कैबिनेट में पेश किया जाएगा। इस नियम के लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश में किरायेदारी से जुड़े विवादों में कमी आने की उम्मीद है।
उत्तर प्रदेश सरकार का यह कदम मकान मालिकों और किरायेदारों दोनों के लिए फायदेमंद साबित होगा। स्टाम्प शुल्क में कटौती, ऑनलाइन पोर्टल, और कानूनी मान्यता मिलने से किरायेदारी व्यवस्था अधिक पारदर्शी और सुरक्षित होगी।