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Up News: 47 दिनों में ही आकाश आनंद क्यों हो गए मायावती के लिए मैच्योर? जानिए 5 कारण…

Up News: Why did Akash Anand become mature for Mayawati in just 47 days? Know 5 reasons...

Up News: Why did Akash Anand become mature for Mayawati in just 47 days? Know 5 reasons...

आम चुनाव के दौरान बसपा प्रमुख मायावती ने आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी बनाया फिर मैच्योरिटी में कमी और पार्टी का भार उठाने के लिए सक्षम न कहकर सभी पदों से मुक्त कर दिया गया। ऐसे में सवाल उटना लाजिम है कि आकाश को 47 दिन पहले अनमैच्योर (अपरिपक्व) कहने वाली मायावती ने उन्हें फिर से अपना उत्तराधिकारी क्यों बना दिया।

47 दिन में आकाश आनंद मायावती के लिए हो गए मैच्योर?

सबसे बड़ा सवाल यही है कि 47 दिन में आकाश मायावती के लिए मैच्योर कैसे हो गए। मायावती का मन बदल गया या भतीजे को लेकर उनका दिल पसीज गया या फिर कोई रणनीतिक वजह से उन्होंने ऐसा किया। राजनीतिक गलियारे में यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या आकाश आनंद अर्श से फर्श पर आ चुकी बसपा को फिर से ऊंचाई पर पहुंचा सकते हैं? और फिर से दलित राजनीति में बसपा की पुरानी छाप छोड़ सकते हैं? ये सवाल इसलिए भी महत्व रखते हैं क्योंकि अभी यूपी के विधानसभा चुनाव में करीब 3 साल का समय शेष है।

अचानक नहीं बल्कि सोची-समझी रणनीति है

भतीजे आकाश को पार्टी में दूसरे पोजिशन पर रखने का फैसला मायावती ने अचानक यू हीं नहीं किया है। इसे उनकी सोची-समझी रणनीति माना जाए तो अचरज नहीं है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि- नगीना संसदीय सीट से चंद्रशेखर आजाद का सांसद बनना, कांग्रेस का दलित पॉलिटिक्स में सक्रिय रूप में उभरना, 2024 के आम चुनाव में बसपा का शून्य पर सिमट जाना, इस निर्णय के अहम कारण हैं।

5 बिंदुओं में समझें कैसे बने अनमैच्योर से मैच्योर

1- मायावती भी कांशीराम के समय ऐसे ही तेवर में दिखती थी

कई अखबारों में मायावती को उनके शुरुआती दौर में भारत की भावी पीएम और सख्त तेवर की छवि के रूप में प्रदर्शित किया जाता था ठीक वैसे ही तेवर आकाश आनंद के अंदर भी दिख रहा है। गौरतलब है कि कांशीराम के समय में ऐसे ही तेवर पार्टी मीटिंग में मायावती के दिखाई देते थे। आनंद भी उन्हीं के जैसे लोकसभा चुनाव 2024 में तीखे प्रहार करते दिखाई दिए थे।

ऐसे में बसपा प्रमुख ने भले ही आकाश के चुनाव प्रचार पर ब्रेक लगा दिया था और उन्हें सभी पदों से मुक्त कर दिया था। पर चुनाव परिणाम के बाद मायावती को समझ में आ गया कि आकाश ही पार्टी को एक नई दिशा देने में सहायक हो सकते हैं।

2- नगीना से चंद्रशेखर का संसद बनना तो कांग्रेस की दलित राजनीति

दूसरा सबसे बड़ा कारण नगीना सीट से चंद्रशेखर आजाद का संसद पहुंचना है। जिससे मायावती ने समझ लिया कि दलित यूथ पॉलिटिक्स में चंद्रशेखर के रूप में एक नया चेहरा मिल चुका है। ऐसे में आकाश आनंद को लाना एक मजबूरी भी हो सकती है। वहीं दूसरी तरफ, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी दलित वर्ग से हैं। इसी के साथ राहुल गांधी लगातार दलितों के मुद्दे पर केंद्र सरकार पर हमलावर दिखाई दिए। ऐसे में मायावती के पास आकाश के अलावा कोई और चेहरा नहीं था, जो यूथ पॉलिटिक्स की राजनीति में सक्रिय हो सके।

आपको बता दें कि आकाश ने अपनी पहली जनसभा नगीना में आयोजित की थी। जहां उन्होंने बिना नाम लिए चंद्रशेखर पर तीखे प्रहार किए थे। ऐसे में अगर, आकाश को पूरा मौका दिया जाता, तो चंद्रशेखर की नैया डुबा सकते थे।

3- बसपा के बुरे दौर में आकाश जैसे नाविक की जरूरत

मायावती करीब 4 दशक से यूपी की राजनीति में सक्रिय रही हैं और 4 बार मुख्यमंत्री भी रही हैं। वहीं कांशीराम के बाद बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी निभा रही हैं। लेकिन, बसपा का यह दौर बहुत बुरा चल रहा है। आम चुनाव 2024 में उसका खाता तक नहीं खुला।

ऐसे में मायावती उस चेहरे के तलाश में थीं, जो उनके बाद पार्टी की जिम्मेदारी को अपने कंधे पर ले सके। वह इस बात से पूरी तरह से अवगत है कि यदि अपने बाद उन्होंने सेकंड लाइन का फेस नहीं तैयार किया तो आने वाले वक्त में दलित वर्ग का यूथ किसी अन्य पार्टी के पाले में जा सकता है।

जिसका संजीव उदाहरण अखिलेश यादव का आम चुनाव में दलित वर्ग के नेताओं को मौका देना है। ऐसे में दलित वोटर्स सपा की ओर चले गए। इस परिस्थिति में सेकंड लाइन की नींव रखने के लिए, मायावती को आकाश जैसे नेताओं की जरूरी है।

4- बसपा का मुद्दा पार्टी तक ही सीमित, मायावती भी रही लोगों से दूर

बसपा आखिरी बार 2007 पूर्ण बहुमत से सत्ता में सरकार बनाने में सफल हुई थी। पर उसके बाद मायावती किसी मुद्दे को लेकर न तो सड़क पर उतरीं और न ही किसी मुद्दे पर अपने विचार ही रखे। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को भी पार्टी से संबंधित कोई दिशा निर्देश नहीं दिए, जिससे पार्टी कमजोर होने लगी।

ऐसे में दलित मूवमेंट को आगे बढ़ाने वाले नेता भी पार्टी छोड़कर अन्य पार्टियों से जुड़ने लगे। इसके बाद भी बसपा प्रमुख ने दलित चेहरे को सक्रिय करना मुनासिब नहीं समझा। ओबीसी वोटों पर पकड़ रखने वाले नेताओं ने भी पार्टी छोड़ अन्य पार्टी का दामन थाम लिया। जिसके चलते बसपा अर्श से फर्श पर पहुंच गई। ऐसे में वर्तमान में आकाश के अलावा बसपा के पास कोई ऐसा मजबूत चेहरा नहीं है, जिसके पास इतनी क्षमता हो कि वो दलित लोगों को अपनी ओर कर सके।

5. बदलते राजनीतिक परिवेश में खुद को न बदलना

बसपा की स्थापना 1984 में हुई थी। कांशीराम के मूवमेंट को मायावती ने उसी तरीके से आगे बढ़ाना शुरू किया। पर, अब राजनीति के माप-दंड बदल गए हैं, लेकिन मायावती अभी तक नहीं बदली।

इस एक मुख्य वजह से बसपा को चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन देखने को मिला है। 2024 के चुनाव में बसपा का कोर वोटर भी छिटक गया और वह सपा के पाले में चला गया। इसलिए मायावती ने काफी सोच-विचार और रणनीति के बाद एक-बार फिर आकाश को जिम्मेदारी सौंपी है, जिससे वह खोई हुई राजनीतिक जमीन पर दबदबा कायम कर सकें।

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