मिल्कीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में शुक्रवार शाम को प्रचार समाप्त होने के साथ ही मतदान की तैयारियां तेज हो गई हैं। यह चुनाव भाजपा और सपा के बीच प्रतिष्ठा का युद्ध बन गया है, जिसमें दलित और ब्राह्मण वोटर्स निर्णायक भूमिका निभाएंगे। लोकसभा चुनाव में फैजाबाद सीट गंवाने के बाद भाजपा के लिए यह चुनाव “प्रतिकार” का अवसर है, जबकि सपा “परिवारवाद” के आरोपों को पीछे छोड़ने की कोशिश में जुटी है।
मुख्य दावेदार और जातिगत समीकरण
आरक्षित सीट होने के कारण सभी प्रमुख दलों ने दलित समुदाय के उम्मीदवार उतारे हैं। भाजपा ने पासी समुदाय* के चंद्रभानु पासवान को टिकट दिया है, जबकि सपा ने अजित प्रसाद (पूर्व सांसद अवधेश प्रसाद के पुत्र) को मैदान में उतारा है। चुनाव में ब्राह्मण मतदाताओं को लुभाने के लिए भाजपा ने पूर्व विधायक खब्बू तिवारी को प्रचार में झोंक दिया है, वहीं सपा ने पूर्व मंत्री पवन पांडेय की मदद ली है।
भाजपा के लिए क्यों है यह चुनाव अहम?
1. फैजाबाद की हार का सदमा: राम मंदिर निर्माण के बावजूद लोकसभा में फैजाबाद सीट गंवाने के बाद भाजपा इस जीत से “छवि क्षति” की भरपाई चाहती है।
2. आंतरिक असंतोष: टिकट न मिलने पर पूर्व विधायक बाबा गोरखनाथ और रामू प्रियदर्शी नाराजगी जताई, लेकिन मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद वे प्रचार में जुटे।
3. युवा चेहरा: चंद्रभानु पासवान के युवा और सक्रिय छवि से पार्टी को नई ऊर्जा की उम्मीद।
सपा की चुनौतियाँ और अवसर
– परिवारवाद का आरोप: अजित प्रसाद के टिकट पर विपक्षी दलों ने “वंशवाद” का हमला बोला है।
– बागियों का खतरा: आजाद समाज पार्टी के सूरज चौधरी और कांग्रेस के भोलानाथ भारती के मैदान में रहने से सपा के वोट कट सकते हैं।
– मित्रसेन यादव का समर्थन: पूर्व मंत्री मित्रसेन यादव के बेटे आनंद सेन का समर्थन सपा के लिए रणनीतिक फायदा।
मतदाताओं की नाराजगी: “विकास गायब, वादे खोखले”
क्षेत्र के लोगों का आरोप है कि चुनाव प्रचार में बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे गायब हैं। मतदाता कहते हैं, “नेताओं को सिर्फ वोट चाहिए, हमें सड़क, रोजगार और अस्पताल चाहिए।” सपा और भाजपा दोनों ने वादों की झड़ी लगाई, लेकिन कोई ठोस योजना पेश नहीं की।
जातिगत आँकड़े: किसके पास कितना वोट बैंक?
कुल मतदाता: 1,92,984 (पुरुष) + 1,77,838 (महिला) = 3,70,822
जाति आधारित विभाजन (अनुमानित):
– दलित: 90,000
– पासी: 65,000
– यादव: 62,000
– ब्राह्मण: 63,000
– मुस्लिम: 31,000
– क्षत्रिय: 18,000
– अन्य (चौरसिया, मौर्या, कुर्मी): 40,000+
निर्णायक कारक: गठबंधन या जाति समीकरण?
1. दलित एकता: पासी समुदाय का वोट भाजपा या सपा में बंटने से परिणाम प्रभावित होगा।
2. ब्राह्मणों का रुख: खब्बू तिवारी के प्रभाव से भाजपा को लाभ मिलने की उम्मीद।
3. यादव-मुस्लिम गठजोड़: सपा की पारंपरिक जनाधार, लेकिन बागी उम्मीदवारों से खतरा।
आखिरी पड़ाव: 7 मार्च को मतदान और 10 मार्च को परिणाम। दोनों दलों के लिए यह चुनाव भविष्य की राजनीतिक दिशा तय करेगा।