6 ऐसी फिल्में जो देखते हुए साहित्य पढ़ने जैसा महसूस कराती हैं
ABHINAV TIWARI
फिल्में देखना शायद ही किसी को पसंद न हो, परंतु कुछ ऐसी फिल्में आपके लिए आज इस वेब स्टोरी में लाए हैं जो देखने के साथ साहित्य पढ़ने जैसा अनुभव दिलाती हैं।
नो कंट्री फॉर ओल्ड मैन (2007)
कॉर्मैक मैक्कार्थी के उपन्यास का यह सिनेमाई रूपांतरण है। यह फिल्म नैतिकता और भाग्य की एक गहरी खोज है, जिसमें एक कथात्मक गहराई है जो महान साहित्य की जटिलता को दिखाती है।
द ग्रैंड बुडापोस्ट होटल (2014)
इस फिल्म में वेस एंडरसन की दृश्य शैली और कहानी कहने का ढंग एक सनकी उपन्यास का आकर्षण पैदा करता है। कथा के भीतर कहानी कहने की परतें एक आनंददायक जटिलता को जोड़ती है।
द दार्जिलिंग लिमिटेड (2007)
वेस एंडरसन की एक और फिल्म है जो एक किताब की तरह सामने आती है। जिसका नाम द दार्जिलिंग लिमिटेड है। यह भारत में ट्रेन यात्रा पर निकले तीन अलग-अलग भाइयों की कहानी बताती है, जो दुःख-हानि और दुस्साहस से जूझ रहे हैं।
मानसून वेडिंग (2001)
मीरा नायर की फिल्म एक आदर्श मिश्रण है, जो सामाजिक मुद्दों की अधिक सूक्ष्म खोज के साथ प्यार और परिवार का उत्सव है। यह एक आनंददायक परंतु विचारोत्तेजक सिनेमाई अनुभव है।
लंचबॉक्स (2013)
भारतीय सिनेमा का एक रत्न, रितेश बत्रा द्वारा निर्दिशित यह फिल्म, कनेक्शन और संयोग की एक कहानी को बताती है। एक लंचबॉक्स जो गलत तरीके से वितरित किया गया, जिसके कारण दोस्ती और प्यार की एक दिल छू लेने वाली कहानी सामने आती है।
पीकू (2015)
शूजीत सरकार की यह फिल्म एक पिता और बेटी के रिश्ते से दिल को छू लेने वाली कहानी है। यह साहित्य में पारिवारिक गाथा की तरह हास्य और भावनात्मक गहराई को जोड़ता है।