सर्दी में कान छिदवाना कितना सुरक्षित

ABHINAV TIWARI

भारत में कान छिदवाने की परंपरा बहुत पुरानी है जो अब फैशन ट्रेंड बन चुकी है।

लड़कियां हों या लड़के स्टाइलिस लुक के लिए इयर पियर्सिंग कर मनचाहे इयरिंग्स पहन अपनी पर्सनैलिटी में चार चांद लगा रहे हैं। हिंदू धर्म में 16 संस्कार है जिसमें 9वां संस्कार कर्ण वेध है। यह संस्कार बहुत छोटी उम्र में ही कर दिया जाता है।

माना जाता है कि कर्ण वेध संस्कार, बच्चे के जन्म के 16वें दिन, छठे या सातवें महीने तक किया जा सकता है।

अगर यह संस्कार किसी कारण से न हो पाए तो बच्चे के 3 साल, 5 साल या 7 साल पूरे होने के बाद कान छिदवाने चाहिए।

कान छिदवाने के लिए यह समय सबसे अच्छा है, क्योंकि इस मौसम में न ज्यादा पसीना आता है और न हवा में उमस होती है।

गर्मी और मानसून में ईयर पियर्सिंग नहीं करवानी चाहिए क्योंकि छेद को नमी और पसीने से बचाना जरूरी है।

नमी से इन्फेक्शन का खतरा रहता है। अगर कोई गर्मी और मानसून में कान छिदवाना चाहता है तो उन्हें धूल मिट्टी से बचकर रहना चाहिए।

कुछ दिन घर में कूलर या एसी की ठंडक में रहना चाहिए ताकि कान का छेद जल्दी ठीक हो जाए।

यह पोस्ट समान्य जानकारी के आधार पर आधारित है और पब्लिक डोमेन में उपस्थित है "यूपी की बात" न्यूज़ चैनल इस जानकारी की पुष्टि और जिम्मेदारी नहीं लेता है। 

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