रटन टाटा का विदेशी कंपनी से बदला और टाटा नैनो का आइडिया

ABHINAV TIWARI

साल 1998 की बात है। जब टाटा मोटर्स ने देश की पहली स्वदेशी कार टाटा इंडिका को बाजार में उतारा था। यह रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट था, लेकिन इसे सफलता नहीं मिली। कंपनी घाटे में चली गई।

ऐसे में टाटा मोटर्स ने एक साल के अंदर ही इस कारोबार को बेचने की तैयारी कर ली। फिर 1999 में रतन ने अमेरिका की कंपनी फोर्ड के साथ डील करने का फैसला किया।

फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड के साथ रतन टाटा की मीटिंग तय हुई।

लेकिन बिल फोर्ड ने टाटा से कहा कि "आपने पैसेंजर कार डिवीजन शुरू ही क्यों किया जब आपको इस बार में कोई ज्ञान और अनुभव नहीं था।"

फोर्ड ने टाटा को और नीचा दिखाने के लिए यह भी कहा कि यह डील करके वह टाटा पर एहसान ही करेंगे। जो कि रटन टाटा के लिए अपमान की बात थी। ऐसे में उन्होंने कार प्रोडक्शन यूनिट बेचने का अपना इरादा बदल दिया।

फिर 9 साल बाद समय का पहिया बदल गया। 2008 में वैश्विक मंदी के दौर में अमेरिका कंपनी फोर्ड दीवालिया होने की कगार पर पहुंच गई।

रटन टाटा के फोर्ड के 2 पॉपुलर ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर 193.14 अरब रुपए में टाटा ने खरीद लिया।

इसी तरह एक बार मुंबई की तेज बारिश में उन्होंने स्कूटर पर बैठे एक परिवार को भीगते देखा। जिससे उन्हें टाटा नैनों के निर्माण की प्रेरणा मिली।

रतन टाटा ने इंजीनियर्स को बुलाया और 1 लाख रुपए में कार तैयार करने को कहा। 2008 में उन्होंने मिडिल क्लास के लिए दुनिया की सबसे सस्ती कार टाटा नैनो को लॉन्च किया।

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