क्या है सिंधु जल समझौता? जिसे भारत ने अब रोका

Abhinav Tiwari

कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है।

बुधवार को आयोजित कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक में साल 1960 के 'सिंधु जल समझौते' को तत्काल प्रभाव से स्थगित रखने का निर्णय लिया गया है।

यह कदम कूटनीतिक दृष्टि से पाकिस्तान पर बड़ा दबाव बनाने वाला माना जा रहा है।

क्या है सिंधु जल समझौता (Indus Waters Treaty)?

सिंधु जल समझौता भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच सितंबर 1960 में कराची में हुआ था।

इस संधि की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी।

इसके तहत सिंधु नदी प्रणाली की 6 नदियों को दो भागों में बांटा गया:

पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलुज) — भारत को पूरा अधिकार

पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चिनाब) — पाकिस्तान को प्राथमिक उपयोग का अधिकार

समझौते का मूल स्वरूप

भारत को केवल 19.5% पानी मिलता है, जबकि पाकिस्तान को लगभग 80% पानी दिया जाता है।

भारत को पश्चिमी नदियों पर सीमित सिंचाई, हाइड्रोपावर और घरेलू उपयोग की अनुमति है।

हर साल दोनों देशों के बीच सिंधु जल आयोग की बैठक आयोजित करना अनिवार्य है।

भारत ने सिंधु जल समझौता क्यों रोका?

पहलगाम के बैसारन घाटी में हुए आतंकी हमले में 26 भारतीय नागरिकों की मौत के बाद भारत ने यह कदम उठाया।

यह पहली बार है कि भारत ने इस संधि को स्थगित करने का फैसला लिया है।

इससे पहले जनवरी 2023 में भारत ने पाकिस्तान को इस समझौते में संशोधन के लिए नोटिस भी जारी किया था।

इस फैसले का क्या असर होगा?

पाकिस्तान की 21 करोड़ से अधिक आबादी की जल जरूरतें इन नदियों पर निर्भर हैं।

सिंधु और उसकी सहायक नदियाँ चार देशों (चीन, भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान) से होकर गुजरती हैं।

भारत अगर पूरी तरह से अपने अधिकार का प्रयोग करे, तो पाकिस्तान में पानी की गंभीर किल्लत हो सकती है।

62 साल पुराने इस समझौते को स्थगित करना भारत का अब तक का सबसे बड़ा जल कूटनीतिक निर्णय है।

इससे न केवल पाकिस्तान की जल निर्भरता पर असर पड़ेगा, बल्कि भारत ने एक स्पष्ट संदेश भी दिया है — "आतंकवाद का जवाब अब पानी से भी दिया जा सकता है।"

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