भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आज भी, भारत की सबसे ताकतवर पीएम मानी जाती हैं, लेकिन एक समय था जब उन्हें उनकी ही पार्टी से निकाल दिया गया था।
1967 में इंदिरा दूसरी बार प्रधानमंत्री बनीं थी और उस समय मोरारजी को उन्होंने डिप्टी प्राइम मिनिस्टर बनाया था।
मोरारजी को इंदिरा की लीडरशिप में काम करना अच्छा नहीं लगता था ऐसे में दोनों के बीच मतभेद होने लगे।
16 जुलाई 1969 को इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई को अपनी कैबिनेट से निकाल दिया और 3 दिन बाद 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया।
इससे कांग्रेस का सिंडिकेट गुट नाराज हो गया। पार्टी के भीतर इंदिरा के खिलाफ बगावत के सुर उठने लगे।
इस बीच राष्ट्रपति जाकिर हुसैन का निधन हो गया। कांग्रेस के बड़े नेता नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति बनाना चाहते थे।
वहीं, इंदिरा गांधी चाहती थी कि वीवी गिरी राष्ट्रपति बनें। इंदिरा के विरोध के बावजूद कांग्रेस ने संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया।
इंदिरा के कहने पर तत्कालीन उप राष्ट्रपति वीवी गिरी इस्तीफा देकर निर्दलीय मैदान में उतर गए।
वोटिंग के एक दिन पहले कांग्रेस अध्यक्ष निजलिंगप्पा ने संजीव रेड्डी के पक्ष में मतदान के लिए व्हिप जारी किया।
इंदिरा गांधी ने सांसदों और विधायकों से आत्मा की आगाज पर वोट डालने की अपील की।
रिजल्ट आया तो कांग्रेस के उम्मीदवार संजीव रेड्डी चुनाव हार गए और वीवी गिरी राष्ट्रपति बने।
इसके बाद कांग्रेस के सिंडिकेट मेंबर्स ने इंदिरा को पार्टी से हटाने का मन बना लिया।
12 नवंबर 1969, पंडित जवाहरलाल नेहरू की बर्थ एनिवर्सरी से 2 दिन पहले कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने बैठक बुलाई।
3 घंटे की मीटिंग के बाद 21 में से 11 सदस्यों की सहमति से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया गया।
लेकिन, इंदिरा गांधी ने कमेटी का फैसला नहीं माना और अगले ही दिन उन्होंने भी एक बैठक बुलाई और कांग्रेस टूट गई।
इंदिरा गांधी ने कांग्रेस रिक्विजिशनिस्ट (कांग्रेस- आर) बनाई और दूसरा धड़ा कांग्रेस ऑर्गेनाइजेशन यानी कांग्रेस(ओ) हो गया।
इंदिरा की सरकार अल्पमत में आ गई, लेकिन लेफ्ट और डीएमके की मदद से उनकी सत्ता बरकरार रही।