श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि में हुआ था। रात का मध्यकाल, रात में 12 बजे होता है। इस कारण जन्माष्टमी को रात में मनाते हैं।
गांव के सभी लोग माखन को कंस के यहाँ पहुँचाते थे, जिससे गांव के परिवारों को दूध, दही और माखन नहीं मिल पाता था। इसलिए कान्हा ने मटकी फोड़ने की परंपरा शुरू की।
माखन-मिश्री का भोग श्रीकृष्ण को बेहद प्रिय था। ऐसे में सभी मित्र गांव के घरों में एक-दूसरे पर चढ़कर मटकी तकपहुंच जाते थे और माखन का आनंद लेते थे।
इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक भूखे रहकर गोवर्धनपर्वत को उठाए रखा। इसलिए ब्रजवासियों ने उन्हें 7 दिन और 8 पहर के हिसाब से 56 व्यंजन के भोग खिलाए थे।
श्रीकृष्ण पृथ्वी पर 125 वर्ष तक रहे। 6 दिन की अवस्था में पूतना का वध किया। कई राक्षसों और शेषनाग को हराने के बाद 13 वर्ष की उम्र में कंस का वध किया।
विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की पूजा में तुलसी का खास महत्व है। मान्यता है कि तुलसी के बिना भगवान भक्त द्वारा लगाए गए भोग को ग्रहण नहीं करते हैं।
श्रीकृष्ण की 16 हजार 108 रानियां थी। उनमें 8 पटरानियां थी। इनमें रुक्मणी, कलिंदी, जाबवंती, सत्यभामा, सत्या, भद्रा, लक्ष्मणा और मित्रबिंदा शामिल थी।
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