नई दिल्ली : जिस भतीजे आकाश आनंद को बुआ मायावती ने सर अपने कभी -आँखों पर नवाज कर पहले पार्टी का नेशनल कोरडीनेटर और बाद में यहां तक कि अपना उत्तराधिकारी तक घोषित कर दिया था आखिर क्या हुआ कि मायावती ने सारी मोह माया का त्याग कर उन्हें सभी पार्टी पदों से हटा दिया।
याद रहे कि आकाश ने अपने जोशीले भाषणों से उत्तर प्रदेश की राजनीति में सनसनी पैदा कर दी थी। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार हो रहा था, लेकिन पार्टी नेतृ्त्व चिंतित हो गया था। बुआ भी नहीं चाहती थीं कि उनका भतीजा आकाश खुद किसी सियासी संकट में न फंसे . तो लोक सभा चुनाव के चौथे चरण से पूर्व बसपा प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के एक फैसले ने मंगलवार रात सबको चौंका दिया।
जब उन्होंने एक ट्वीट कर यह बात चुपचाप पार्टी सर्किल में पहुंचा दी कि पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर और स्वयं अपने उत्तराधिकारी आकाश आनंद को सभी पदों से हटा दिया गया है। . मायावती ने यह कदम लोकसभा चुनाव के दौरान उठाया वह भी ऐसे समय जब लोकसभा चुनाव के मतदान के चार चरण बाकी हैं ।.
अपने जोशीले भाषणों से चर्चा में आये थे आकाश
एक समय था जब बसपा में नंबर दो के नेता माने जाने वाले आकाश आनंद 2017 में राजनीति में सक्रिए हुए थे और तब मायावती ने उन्हें 2023 में बसपा का नेशनल कोऑर्डिनेटर और अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था.।. यह आकाश की पार्टी गतिविधियों में सक्रियता थी जिसकी वजह से उस साल हुए लोकसभा चुनाव में अकेले आकाश आनंद की 10-10 रैलियां हुईं जिसमें आकाश ने आक्रामक भाषण दिए.और इसके कारण आकाश लाइम लाइट में भी आ गए।.अपने भाषणों में उन्होंने भाजपा, पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर जमकर निशाना साधा .।
आनंद के भाषणों से एक तरफ उत्साह तो पार्टी नेतृत्व हुआ असहज
आनंद के भाषणों से पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार हो रहा था.लेकिन पार्टी नेतृत्व असहज हो रहा था.। वह नहीं चाहता था कि वो किसी संकट में फंसे.। अपने उत्तेजक बयानों के लिए जाने वाले आकाश उस समय और भी चर्चा में आ गए जब 28 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के सीतापुर में आयोजित रैली में प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की तुलना तालिबान से कर दी. उन्होंने लोगों से कहा था कि वो ऐसी सरकार को जूतों से जवाब दें.
इस भाषण के बाद आकाश आनंद पर आचार संहिता के उल्लंघन का मुकदमा दर्ज कराया गया.।इसके बाद पार्टी ने आकाश आनंद को चुनाव प्रचार से हटा दिया. उनकी प्रस्तावित रैलियां रद्द कर दी गईं.आनंद की 1 मई को ओरैया और हमीरपुर में रैली होनी थी.बसपा ने रैलियां रद्द करने का कारण परिवार में किसी की बीमारी बताया.।
तो सवाल उठता है क्या अभी तक परिपक्व नहीं हुए आकाश आनंद ?
इस साल लोकसभा चुनाव में आकाश आनंद ने कई समाचार चैनल्स को अपने इंटरव्यू दिया और इस दरम्यान उन्होंने हर तरह के सवालों के जवाब दिए.। उन्होंने यहां तक कहना शुरू कर दिया कि चुनाव के बाद बसपा किसी के भी साथ गठबंधन कर सकती है.उनका कहना था कि इसका लक्ष्य समाज के हित में राजनीतिक सत्ता हासिल करना है.हालांकि उन्होंने बसपा के भाजपा की बी टीम होने के आरोपों को नकार दिया।
उनके इस बयान से पार्टी नेतृत्व असहज हुआ.उसे आकाश के बयानों से फायदा कम नुकसान ज्यादा नजर आने लगा. इसका उल्लेख मायावती ने अपने ट्वीट में भी किया है.उन्होंने कहना शुरू किया कि आकाश आनंद अभी परिपक्व नहीं हुए हैंऔर जब परिपक्व हो जाएंगे तो उन्हें जिम्मेदारियां दी जाएंगी ।
आकाश आनंद ने अपने भाषणों से उत्तर प्रदेश में सनसनी पैदा कर दी थी. इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार हो रहा था, लेकिन पार्टी नेतृ्त्व चिंतित हो गया भतीजे वो नहीं चाहता था कि आकाश किसी सियासी संकट में फंसे
राजनीतिक विश्लेषक मायावती के फैसले की टाइमिंग पर भी सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है कि आकाश आनंद की सक्रियता से बसपा समर्थकों में उत्साह पैदा हो रहा था|
उन्हें आकाश में उम्मीद नजर आ रही थी, खासकर युवाओं में. मायावती के फैसले से बसपा के युवा समर्थकों में निराशा पैदा हो सकती है. इसका असर चुनाव नतीजों पर भी पड़ सकता है. वहीं कुछ विश्लेषकों का यह मानना है कि मायावती नहीं चाहती हैं कि आकाश किसी संकट में फंसे, वह भी ऐसे समय जब पार्टी का जनाधार सिकुड़ता जा रहा है.इसलिए उन्होंने आकाश आनंद को हटाया है।
तो कौन हैं आकाश आनंद ?
आकाश आनंद बसपा प्रमुख मायावती के भाई आनंद के लड़के हैं.। वो 2017 में राजनीति में सक्रिय हुए थे. उन्होंने पहली बार जनवरी 2019 में आगरा में राजनीतिक रैली को संबोधित किया.।आकाश को 2020 में पार्टी का नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया गया था.।सफेद कमीज और नीली पैंट और कान टॉप्स पहनने वाले आकाश आनंद में लोगों को मायावती की छवि नजर आती है.। पिछले कई चुनाव से बसपा की लोकप्रियता का ग्राफ काफी गिरा है. इसका असर उसे मिलने वाले वोटों पर भी पड़ा है. बसपा ने 2019 के चुनाव में दस सीटें जीती थीं.उसे केवल 3.67 फीसदी वोट मिले थे.।वहीं 2009 के चुनाव में बसपा ने 21 सीटें जीती थीं.जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में यूपी में वो सिर्फ एक सीट ही जीत पाई थी ।