कांवड़ रूट पर नेम प्लेट विवाद को लेकर यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर जवाब दाखिल किया है। जिसमें योगी सरकार ने कहा है कि, कांवड़ यात्रा के दौरान खाने-पीने के सामान में लोगों को भ्रम पैदा होता है। खासकर प्याज-लहसुन के संबंध में झगड़ा देखने को मिलता है।
योगी सरकार ने कहा कि कांवड़ियों ने कई बार इसकी शिकायत उनसे की थी जिसको ध्यान में रखकर इस आदेश को पारित किया गया। इसके पीछे का हमारा मकसद बस इतना ही था कि कांवड़ियों को पता चल सके कि वे कौन सा भोजन खा रहे हैं, ताकि उनकी धर्मिक भावनाएं किसी भी प्रकार से आहत न हों और यात्रा शांतिपूर्ण चले। आदेश धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता है, यह सभी के लिए है। बता दें कि यूपी सरकार के जवाब पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है।
यूपी सरकार ने नेमप्लेट याचिका का विरोध किया है। इस संदर्भ में प्रशासन ने कहा कि पुलिस अफसरों ने कांवड़ियों की समस्याओं को दूर करने के लिए और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए इस कदम को उठाया था. सरकार ने केवल मांसाहारी भोजन पर प्रतिबंध को छोड़कर किसी भी दुकानदार के व्यापार पर रोक नहीं लगाया है। दुकानदार व्यवसाय करने के लिए स्वतंत्र हैं।
सरकार ने कहा कि- हर साल 4.07 करोड़ से अधिक कांवड़िया भाग लेते हैं। हम किसी भी धर्म के लोगों की धार्मिक भावनाओं की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। यूपी सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए हमेशा कदम उठाती है कि सभी धर्मों के त्योहार शांतिपूर्ण ढंग से मनाए और संपन्न हों।
4 दिन पहले यानी 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानदारों को अपनी पहचान बताने को लेकर कई राज्य सरकारों के आदेश पर अपनी अंतरिम रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा की- दुकानदारों को पहचान बताने की जरूरत नहीं है। हां, होटल चलाने वाले यह बता सकते हैं कि वह किस तरह का भोजन यानी, शाकाहारी या मांसाहारी परोस जा रहा है। पर उन्हें अपने दुकान के सामने नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
वहीं अदालत ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में ताकत का गलत इस्तेमाल किया है। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। गौरतलब है कि कोर्ट ने, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी करके शुक्रवार तक जवाब देने को कहा है।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा के रूट पर दुकान मालिकों को अपना नाम लिखने का आदेश मिला था। इसके खिलाफ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नाम के NGO ने 20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अल्पसंख्यकों की पहचान के जरिए उनका आर्थिक बहिष्कार किया जा रहा है। यह चिंताजनक है।
1. पुलिस: 17 जुलाई को मुजफ्फरनगर के SSP अभिषेक सिंह ने कहा कि जिले के करीब 240 किमी एरिया कांवड़ मार्ग पर आता है। सभी होटल, ढाबा, दुकान और ठेले, जहां से कांवड़िए खाने का सामान खरीद सकते हैं, सभी को अपनी दुकान के बाहर मालिक का नाम और नंबर साफ अक्षरों में लिखना पड़ेगा। ऐसा करना इसलिए जरूरी था, ताकि कांवड़ियों में कोई कन्फ्यूजन न रह जाए और कानून व्यवस्था में बाधा भी न आए। सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए ये कदम उठाना आवश्यक था।
2. सरकार: मुजफ्फरनगर पुलिस का आदेश सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद 19 जुलाई को सरकार ने इसे पूरे राज्य में लागू कर दिया। सरकार के अनुसार, कांवड़ियों की शुचिता बनाए रखने के लिए ये फैसला लिया गया है। हलाल सर्टिफिकेशन वाले प्रोडक्ट बेचने वालों पर भी कार्रवाई होगी।
यूपी के बाद 20 जुलाई को उत्तराखंड और मध्य प्रदेश के उज्जैन में भी कांवड़ यात्रा रूट पर आने वाली दुकानों में दुकानदारों का नाम और मोबाइल नंबर लिखना जरूरी कर दिया गया था। उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इस फैसले का अपना समर्थन देते हुए कहा था कि कुछ लोग अपनी पहचान छिपाकर दुकान खोलते हैं।
गौरतलब है कि उज्जैन में नगर निगम यह आदेश एक साल पहले ही जारी कर चुका था। हालांकि, इस पर अमल नहीं हो रहा था। उज्जैन के मेयर मुकेश टटवाल ने कहा था कि इस बार सावन के महीने में आदेश पर सख्ती से अमल करवाया जाएगा।
बता दें कि कांवड़ यात्रा में हर साल करीब 4 करोड़ श्रद्धालु शामिल होते हैं। करीब एक महीने तक चलने वाली कांवड़ यात्रा के समय हर श्रद्धालु एक से डेढ़ हजार रुपए तक खर्च करता है। इस हिसाब से पूरी कांवड़ यात्रा के दौरान ₹5000 करोड़ रुपए तक का कारोबार होता है। कांवड़िए खाने-पीने से लेकर हर दिन की जरूरत का ज्यादातर सामान रास्ते में पड़ने वाली दुकानों से ही खरीदते हैं।